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ज़ूदपशेमान / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
ज़ूदपशेमान<ref>अपनी भूल पर बहुत जल्दी पछताने वाला</ref>
गहरी भूरी आँखों वाला इक शहज़ादा
दूर देस से
चमकीले, मुश्की<ref>काले रंग का</ref> घोड़े पर हवा से बातें करता
जगर-जगर करती तलवार से जंगल काटता आया
दरवाज़ों से लिपटी बेलें परे हटाता
जंगल की बाहों में जकड़े महल से हाथ छूड़ाता
जब अंदर आया तो देखा
शहज़ादी के जिस्म की सारी सुईयाँ ज़ंग-आलूदा<ref>ज़ंग लगी</ref> थीं
रस्ता देखने वाली आँखें
सारे शिकवे भुला चुकी थीं !
शब्दार्थ
<references/>