भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ेनिया एक-12 / एयूजेनिओ मोंताले

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: एयूजेनिओ मोंताले  » ज़ेनिया एक-12

वसंत घोंघे की चाल से घिसटता हुआ ।
अब कभी नहीं सुन पाऊँगा मैं ऐंटिबायोटिक विषाक्तता
या कि कूल्हे की हड्डी में सुइयों की-सी चुभन की तुम्हारी शिकायत,
या उस पैतृक विरासत का ज़िक्र
जो झटक ले गया तुमसे वह सहस्राक्ष
(आगे का अंश हटा दिया गया)

वसंत घने कोहरे से लदा हुआ,
लम्बे-लम्बे दिन और ऊब के अहसास से भरा वक़्त ।
अब कभी नहीं सुन पाऊँगा मैं
समय की पिछूटन से, या प्रेतों से, या ग्रीष्मकालीन
आधिभौतिकी समस्याओं से तुम्हें जूझते ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल