भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़ेनिया एक-7 / एयूजेनिओ मोंताले
Kavita Kosh से
|
आत्मदया,
असीम वेदना और विकलता—
उस आदमी की,
जो इस दुनिया को
यहाँ और इसी वक़्त
ध्याता है
जो अगले से उम्मीद करता है
और
निराश होता है...
(किसमें हिम्मत है
जो करे
अगली दुनिया का ज़िक्र ?)
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल