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ज़ेहनों में भेदभाव की दीवार किसलिए ? / शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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ज़ेहनों में भेदभाव की दीवार किसलिए ?
सबका ख़ुदा वही तो है तकरार किसलिए ?
 
सबको तलब है जब यहाँ अम्नो-अमान की,
खिंचती है बात-बात पे तलवार किसलिए ?
 
संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?
 
जब इसका इल्म था कि ये धोया न जाएगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?
 
चलना है सबको साथ, मगर इस सवाल पर
धीमी है सबके पाँव की रफ़्तार किसलिए ?
 
शाहिद कभी तो भीड़ से ये भी उठे सवाल
भारी हुए समाज पे दो-चार किसलिए ?