भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ोम न कीजो शम्अ-रू बज़्म के सोज़-ओ-सज़ा पर / साइल देहलवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़ोम न कीजो शम्अ-रू बज़्म के सोज़-ओ-सज़ा पर
रखियो नज़र बाज-ए-नाज़-ख़ातिर-ए-पीर-ए-नाज़ पर

ज़ेब नहीं है शैख़ ये मय-कश-ए-पाक-बाज़ पर
तोहमतें सौ लगाएगा दाग़-ए-ज़बीं नियाज़ पर

कहता हूँ हर हसीं से मैं नियत-ए-इश्क़ है मिरी
आएगा मेरा दिल मगर शाहिद-ए-दिल-नवाज़ पऱ

फ़र्क़ हयात-ओ-मर्ग का मुर्ग़-ए-चमन के दिल से पूछ
देता है फ़ौक़ दाम को चंगुल-ए-शाह-बाज़ पर

ख़्वाब-ए-लहद है पुर-सुकूँ अहद-ए-हयात पुर-अलम
मौत न क्यूँ हो ताना-ज़न ज़िंदगी-ए-दराज़ पर

संग-ए-दर-ए-हबीब पर होता हूँ सज्दा-रेज़ मैं
ख़ल्क-ए-ख़ुदा है मो‘तरिज़ मुझ पे मिरी नमाज़ पर

मुनइम-ए-बे-बसर यूँही देखिए ता-कुजा रहे
महव-ए-नशात ओ ख़ुश-दिल नग़्मा-ए-तार-ए-साज़ पर

फ़ख्र-ए-अमल न चाहिए सई-ए-अमल ज़रूर है
आँख रहे लगी हुई रहमत-ए-कारसाज़ पर

दर पें बुतों के दी सदा ‘साएल’-ए-बे-नवा ने ये
फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा रहे मुदाम हाल-ए-गदा-नवाज़ पर