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जा! / अज्ञेय
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जा!
जाना है तो ऐसे जा :
या तो गाते-गाते
या फिर तम में जागे-जागे
सहसा पाते
वह जो गाना था, प्रकाश,
वह यह पाया-
यह-हाथ की पहुँच से, बस
तिनका-भर आगे!
हाथ बढ़ा और-
जा!
बिनसर, 19 जून, 1981