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जाए का दिन ई बात / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
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जाए का दिन ई बात
जेमें हम कह के जाईं-
“कि जे इहाँ देखली आ पवलीं
सेकर तुलना कतहीं ना भाई!”
“एह ज्योति का समुन्दर में
जे शतदल कमल फुलाइल बा
ओकर मकरंद पान कके
हम धन्य हो चुकल बानीं”
-जाए का दिने ई बात
जेमें हम जना के जाईं।
संसार रूपी खेला घर में
ना जानी जे कतना खेल खेललीं।
दूनू आँख पसार के
कतना अपरूप रूप के देखलीं।
जेकर स्पर्श असंभव रहे
से समूचे शरीर में समा के
हमरा के पुलकित कइलस
अब अगर हमार अंत करे के बा
त कर द हमरा स्वीकार बा
-जाये का बेरा ई बात
जेमें हम जना के जाईं।