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जाओ यहाँ से तुम अभी नाराज़ हूँ बहुत / कैलाश झा 'किंकर'

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जाओ यहाँ से तुम अभी नाराज़ हूँ बहुत।
आहत किसी की बात से मैं आज हूँ बहुत॥

अब तो किसी के वास्ते फुरसत नहीं उन्हें
फिर भी उन्हीं को दे रहा आवाज़ हूँ बहुत।

डर है उन्हें जो गलतियाँ करते हैं रात दिन
उनका तमाम जानता मैं राज़ हूँ बहुत।

साहिल पर नाव कब तलक ठहरी रहेगी याँ
हैरत-ज़दा नदी है अब रम्माज़ हूँ बहुत।

महफ़िल जमेगी आज ही उनके दलान पर
जिनके घरों में देखता मैं साज हूँ बहुत।