भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाके उर उपजी नहिं भाई / दरिया साहब
Kavita Kosh से
जाके उर उपजी नहिं भाई।
सो क्या जाने पीर पराई॥
ब्यावर जानै पीर की सार।
बाँझ नार क्या लखै बिकार॥
पतिव्रता पति को व्रत जानै।
बिभचारिनि मिल कहा बखानै॥
हीरा पारख जौहरी पावै।
मूरख निरख कै कहा बतावै॥
लागा घाव कराहै सोई।
कोतगहार के दरद न कोई॥
रामनाम मेरा प्रान अधार।
सोई रामरस पीवनहार॥
जन 'दरिया' जनैगा सोई।
(जाके) प्रेम की माल कलेजे पोई॥