भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जागरण की ताकत / नंदेश निर्मल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलो आज हम सब मिल सीखें
एक-एक कर दो बनता है
दो की ताकत एका हो जब
तब विहान का रथ सजता है।
 
ज गो उठो बढ़ कर तो देखो
ना-नुककर की बात नहीं अब
नि र्णय लो तुम चल पड़ने का
मौ का पलट कहाँ आता है।
 
जिनकी कुन्दन पड़ी प्रज्ञा है
अ रुणोदय की श्रुति समझाओ
हर लालन को मार्ग दिखाओ
तप का फल सुंदर मिलता है।
                                   
एक नहीं सौ गीत मिलें जब
दिशा-दिशा गुज्जित होती है
और एक आकार खड़ा कर
जीवन को सफल बनाता है

योग्य वही संतान कहाते
जो शिक्षित अनुशासित होते
वही देश का सफल नागरिक
जो जन-गण-मन को गाता है।