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जागरण गान / कालीकान्त झा ‘बूच’

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असम, वंग पंजाब, गुजरात जागल
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल
सुरूज त्यागि आयल निशा केॅ उषा मे,
खिड़ल जागरण ज्याति दऽशो दिशा मे
सगर श्रृंग - सागर धरिक निन्न जागल
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल
चिकरि हँसि रहल स्यार सिंहक दशा पर
चलल बकगणक हंस पर क्रुर थापर ।
निठुर काक कर सँ पिकक कंठ दागल
अहीं टा पड़ल छी, उठू औ अभागल
विदेहक सुतक देह दुर्वेह बनल अछि
ग्रसित कऽ रहल मैथिली केॅ अनल अछि ।
परक लेल दर्शन अपन आँखि लागल,
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल ।
हरण भऽ रहल अछि हमर मीठ बयना
कोना कऽ सिखत आन बोली ई मयना
विवश अछि वधिक हाथ सँ ठोर तागल
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल
कतऽ पितृ स्वर अछि कतऽ मातृवाणी
फटऽ जा रहल जीह बचबू भवानी
बनब गोर ई गुनि हमर प्राण पागल
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल
बहुत भेल हे आब ककरो ने मानू
निकसि द्वारि प्राचीन तरूआरि तानू
अहह जाहि मे युग युग मे जंग लागल
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल