जागहु लाल, ग्वाल सब टेरत / सूरदास
जागहु लाल, ग्वाल सब टेरत ।
कबहुँ पितंबर डारि बदन पर, कबहुँ उघारि जननि तन हेरत ॥
सोवत मैं जागत मनमोहन, बात सुनत सब की अवसेरत ।
बारंबार जगावति माता, लोचन खोलि पलक पुनि गेरत ॥
पुनि कहि उठी जसोदा मैया, उठहु कान्ह रबि -किरनि उजेरत ।
सूर स्याम , हँसि चितै मातु-मुख , पट करलै, पुनि-पुनि मुख फेरत ॥
भावार्थ :-- (माता कहती है--) `लाल ! जाग जाओ, सब गोप-बालक तुम्हें पुकार रहे हैं।'मोहन कभी मुख पर पीताम्बर डाल लेते हैं और कभी मुख खोलकर माता की ओर देखते हैं । मनमोहन सोते में भी जाग रहे हैं, सबकी बातें सुनते हैं, किंतु उठने में विलंब कर रहे हैं । माता बार-बार जगाती हैं, नेत्र खोलकर भी फिर पलकें बंद कर लेते हैं । यशोदा माता फिर बोल उठीं - `कन्हाई ! उठो । सूर्य की किरणें प्रकाश फैला रही हैं ।' सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर हँसकर माता के मुखकी ओर देखकर फिर वस्त्र हाथ में लेकर बार-बार (सोने के लिये) मुख घुमा लेते हैं ।