जागऽ जवान आज / दयाशंकर तिवारी
देशवा पर आइल बा संकट महान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो!
एही धरतिया के राम, कृष्ण, बापू,
शेखर, सुभाष, भगत भइले लड़ाकू।
ओकरे ही अंगना में विलखत विहान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो।।
विष बोवें जगह-जगह लम्पट अग्यानी,
तुलसी के भजन मौन, नानक के बानी।
बेअसर शब्द कीर्तन भजन औ अजान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो।।
घर-घर में आइल बा कइसन मजबूरी,
भाई अब भाई के भोंकि रहल छूरी।
रोग लगल कइसन, ना सूझे निदान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो।।
धरम सब समान, कहीं भेद ना बुझाला,
गिरजाघर, मंदिर भा मस्जिद, गुरुद्वारा।
राह भले अलग, एक मंजिल पहचान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो।।
देश में विदेशियन के जाल अधिकइलें,
फिर से जयचन्द, मीरजाफर बिकइलें।
सजग रहऽ सिद्ध संत, पंडित, पठान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो।।
दुनिया में प्रेम के सनेस जे पठावल,
ओकरे घर कइसन ई घृणा के महावल।
पलटऽ गुरुग्रन्थ, वेद, बाइबिल, कुरान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो।।