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जागे की कोई सोऐ हम फ़र्ज़ निभा आये / हनीफ़ राही

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जागे की कोई सोऐ हम फ़र्ज़ निभा आये
हम रात की गलियों मे आवाज़ लगा आये

मालूम नहीं हमको फूलों में छुपा क्या है
बातों से तो ज़ालिम की ख़ुश्बू ए वफ़ा आये

ज़ख़्मो पे कोई मरहम रख्खे या नमक छिड़के
हम दर्द का अफ़साना दुनिया को सुना आये

उठती चली जाती है दीवार गुनाहों की
कह दो ये समंदर से साहिल पे चला आये

अंदाज़े नज़र उसका पागल न कहीं कर दे
जब उसकी तरफ़ देखूँ आँखों में नशा आये

यादों के दरीचों से बचपन की गली झाँके
"राही" मेरे आँगन में ममता की हवा आये