भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जागे माई सुंदर स्यामा-स्याम / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जागे माई सुंदर स्यामा-स्याम।
कछु अलसात जँभात परस्पर टूटि रही मोतिन की दाम।
अधखुले नैन प्रेम की चितवनि, आधे-आधे वचन ललाम।
बिलुलति अलक मरगजे बागे नख-छत उरसि मुदाम।
संगम गुन गावत ललितादिक, बाजत बीन तीन सुर ग्राम।
’हरीचंद’ यह छबि लखि प्रमुदित तृन तोरत ब्रज-वाम॥