भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जागे हुए नयन में बन के खुमार आये / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जागे हुए नयन में बन के खुमार आये
रातों में कोई मेरी बन इंतज़ार आये
एहसास साँवरे का रहता है साथ हरदम
वो साथ-साथ लेकर खुशियाँ हज़ार आये
धुंधली हुई नज़र से उस को न देख पाऊँ
आँखों में अश्क़ मेरे फिर बेशुमार आये
मंजिल जिधर है मेरी हैं मुश्किलें हज़ारों
क्यों बार-बार मेरी राहों में ख़ार आये
फूलों की वादियों ने मेहमान बना रक्खा
काँटों के बीच सारा जीवन गुज़ार आये
तक़दीर में लिखे हैं पतझार के फ़साने
ऐ काश बहारों को ले कर बयार आये
कदमों की तेरे आहट मुसकान खिला देती
तू ज़िन्दगी में मेरी फिर बार-बार आये