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जागोॅ हे ग्रामदेव / भाग 4 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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”नदी के
कोरे-कोर
बाँसोॅ के
कासोॅ के
चम्पा के
कदमोॅ के
छितमन के
अड़हुल के
ढकमोरै
गाछ सिनी
जै पर कि
नाना रँ
चिड़िया के
शोर हुऐ
जेन्है केॅ
भोर हुऐ।“

”कटी गेलै
गाछ सिनी
बड़के नै
तनी-तनी
बंजर सन
लागै छै
सौंसे ठो
हमरोॅ ई गाँव
सुलगै छै छाँव।“

”अभियो भी
आवै छै
नभ में
मँडरावै छै
समय-समय
अंडा केॅ
पारै लेॅ
ऋतु केॅ
हरसावै लेॅ
लेकिन कि
हौ रं नै
जेना कि
देखलेॅ छी
हम्में ई
गाँव में
आबेॅ तेॅ
देह जरै
छाँव में।“

”की भेलै
बाघोॅ केॅ
सिहोॅ केॅ
हिरनोॅ केॅ
भालू केॅ
जेकरोॅ कि
बोली सें
गूँजै है रात
भूलौं नै बात।“

”गाछ-बिरिछ
कटथैं ही
कटी गेलै
मरी गेलै
जीवो सब
जंगल के
केन्होॅ छै
बहलोॅ बयार
कानै नै
आवेॅ तेॅ
रातो सियार।“

”केन्होॅ ई
युग ऐलै
केन्होॅ ऊ
युग छेलै
तखनी तेॅ
जीवोॅ लेॅ
पक्षी लेॅ
प्राण तक
दै डालै
आबेॅ नै
बात ई
मन सालै
गाय कटै
भैंस कटै
ऊँट कटै
जंगल संग
आरी सें
क्षणै-क्षणै
पारी सें।“

”हेन्हैं नै
गामोॅ के
जलवायु
रुठलोॅ छै
गामे के
लोग जबेॅ
नाशै लेॅ
जुटलोॅ छै
किस्मत सब
लोगोॅ के
फुटलोॅ छै।“

”आभी की
होलोॅ छै
आरो भी
बाकी छै
फूटै लेॅ
काँचोॅ के
मूरत ई
टूटै लेॅ
जे रं कि
आपनै में
आपने सब
मार करै
आपने संहार करै।“

”फूटै छै
ऐटम बम
मानव बम
हथगोला
दहलै छै
सीमा सब
शहरो सब
गाँव-टोला
जिन्दा केॅ
दफनावै
लेहू के
नद्दी छै
उफनावै
बुतरू केॅ
बच्चा केॅ
दोषी केॅ
अच्छा केॅ
केकरोॅ नै
छोड़ै छै
राकस सें
नाता केॅ
जोड़ै छै।“

”सब्भे के
घोॅर-द्वार
सूना छै
केकरो नै
बोलोॅ दुख
दूना छै
आबेॅ तेॅ
मंदिर तक
मस्जिद तक
राखेॅ नै
पारै छै
आदमी के मान
कानै भगमान
ढोंग-ढांग
पूजा में
पाठोॅ में
पैसे के
खेल जहाँ
वै ठां छै
देव कहाँ।“

”समझै में
आवै नै
आखिर में
मानव के
रहलै नै
कैन्हें नी
मेाल यहाँ
लुढ़कै छै
बाजै नै
फट्टा रं
ढोल यहाँ
यै में छै
झूठ कहाँ
आबादी
बढ़लोॅ छै
बालू रं
बोहा के
पानी रं
जेना गोहाली में
सानी रं।“

”गामे में
देखोॅ नी
आबादी
की रं के
बढ़लोॅ छै
भादोॅ में
कोशी के
बोहोॅ रं
चढ़लोॅ छै
कल तक तेॅ
गामे में
उपजा के
ढेर रहै
कनमा भर
चाहे तेॅ
तरजू में
सेर रहै।“

”तखनी नै
छेलै ई
ई रं आबादी
दस ठो बस
घोॅर छेलै
घुरी आवै दादी
आबेॅ तेॅ दू सै सें
ज्यादा ही बासा छै
हेना में सुक्खोॅ के
बोलोॅ की आशा छै
कालीचन
अरविनमा
अबदुलवा
उसमनमा
अजनसिया
अरदसिया
छवे ठो
छौड़ा के
वंश यहाँ
रावण रं
छिरयैलोॅ
जेकरा सें
वही सब नै
सौंसे गाँव ओझरैलोॅ।“

कहाँ गेलै
कमला के
सुन्दर रं
गीत-नाद
नटुआ नै
नाँचै छै
मंतर नै
बाँचै छै
बहुरा बस
खेल करै
डायन सें
मेल करै
पचिया तेॅ
अलगे ही
बेकल छै
निगलै लेॅ
राजा सलेश
देखी केॅ
साधू रं
भेष।“

”चारो दिश
घूमै छै
भूत-प्रेत
लेकिन नै
घूमै छै
भगतोॅ के
सिद्ध बेंत
शृंगी के
मंत्रो नै
आरो
विश्वामित्र
सब अमित्र।“