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जागोॅ हे ग्रामदेव / भाग 5 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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”कोशी तेॅ
होने छै
होने ही
रेत-घाट
लेकिन नै
बुद्धोॅ के
धम्मपाठ
अभियो भी
कोशी के
रेतोॅ पर
घूमै छै
छाया सन
बात्योॅ के
जौनें कि
लोगोॅ केॅ
जीवन के
सच्चा सन
धर्म-गान
गावै लेॅ
बतलैलकै
लेकिन हौ
भाव शुद्ध
आबेॅ नै
मोॅन बुद्ध।“

”खाली बस
कपड़ा छै
देहोॅ पर
बग-बग सन
मन तेॅ बस
काजर-कजरोटी छै
जहरोॅ के पाटी छै।“

”तहिया तेॅ
लोगोॅ के
डाँढ़ा में
छेलै जों
खाली लंगोटी
तहियो सुभावोॅ सें
टापे टुप
मनोॅ के कोठी।“

आबे तेॅ
लोगोॅ केॅ
डोॅर लगै
रिश्ता सें
जोॅर लगै
गोतिये नै
पितिये नै
बेटा सें
बापोॅ केॅ
बापोॅ केॅ
बेटा सें
डोॅर लगै
घरो की
घोॅर लगै?“

”आखिर ई
कोन हवा
गाँमोॅ में
उठलोॅ छै
रिश्ता सब
टुटलोॅ छै
देवी सन
माय-बहिन
बहुओ अपमानित छै
आतमहन लेॅ
शापित छै।“

”बिहुला के
बेटी के
हालत ई
जेकरा सें
आगू नै
तीरथ छै
धरमो नै
वेदो नै
मंत्रो नै
सच्चे में
समझोॅ नै
किवदन्ती
आय वही
अपमानित
सतवन्ती।“

”जौनंे कि
बेटा लेॅ
पतियो लेॅ
लै छै उपवास
ओकरे उपहास।“
”चूल्हा में
भट्टी में
दलदल में
खेतोॅ में
जारै जे देह
तरसै ऊ
पावै लेॅ नेह।“

”हेनोॅ ई
काल-चक्र
जेकरोॅ छै
दृष्टि-वक्र
अगियैलोॅ
उमतैलोॅ
नै जानौं
की करतै
जीतै नर
या मरतै।“

हे हमरोॅ
ग्रामदेव
सुतलोॅ छोॅ
कैन्हें तोंय
नींदोॅ केॅ त्यागोॅ
जागोॅ हे जागोॅ।“

”जागोॅ तोंय
पच्छिम सें
पूरब सें
उत्तर सें
दक्खिन सें
सरंगोॅ सें
धरती सें
सब्भे टा
कोना सें
पानी सें
पत्थल सें
गाछोॅ सें
रेतोॅ सें
खेतोॅ सें
सब्भे टा
टोला सें
जागोॅ हे ग्रामदेव।“

”हुलसेॅ जन
हुलसेॅ मन
गामोॅ के
गामे नै
भारत के
भारत की
दुनिया की
जे भी छै
ग्रह-नक्षत्र
यत्र-तत्र
खिलखिलाय
बस अघाय।“

”सुखलोॅ छै जल
आभी जे
कुइयाँ के
पोखर के
नद्दी के
मेघोॅ के पानी
लब-लब होय जाय
सब अघाय।“

”सोची केॅ
की-की नै
बितलोॅ सब
बातोॅ केॅ
मटकावै
अंगुली केॅ
मोड़ी केॅ
हाथोॅ केॅ
सुमरै छै
देवोॅ केॅ
गावै छै
हाथ जोड़ी
जागोॅ हे
ग्रामदेव।“

”फेनू सें
धरमोॅ में
लोगोॅ के
मोॅन हुएॅ
लोगोॅ में
शील हुएॅ
बोली में
शहद-मोॅद
हिरदय सें
निश्चय ऊ
शान्तचित्त
करमोॅ सें
सत्संगी
भगवत में
प्रेम हएॅ
दयावान
दुसरा के
सम्पत केॅ
नारी केॅ
आपनोॅ नै
समझेॅ वैं
दुष्टोॅ केॅ
त्यागी देॅ

फेरू सें
लोग हुएॅ
विद्या में
डुबलोॅ सन।“

”आरो ई
देशोॅ के
हमरोॅ ई
गाँमोॅ के
नारी-जनानी
बनेॅ भवानी
शीलवती
सत्यवती
कर्मवती
सहनशील
प्रेमवती
तन-मन सें
चिरयुवती
गंगा सन
वेगवती।“

”जागोॅ हे
ग्रामदेव
जागवौ तेॅ
जागतै ही
फेनू सें
ऋषि-मुनि
यक्ष-पितर
आरो सब
देवो भी
जागतै गन्धर्व
भैरव राग
दीपक राग
मालकोस
घरे-घर
कोसे-कोस।“

”जागोॅ हे
ग्रामदेव
ताकि सब
गामे-गाम
जागी जाय
सिद्धि सब
अणिमा भी
महिमा भी
गरिमा भी
लघिमा भी
प्राप्ति भी
आ प्रकाम्य
ईशित्वे नै
वशित्वो भी
जागोॅ हे
ग्रामदेव।“

”जागोॅ हे
ग्रामदेव
यै लेॅ कि
फेनू सें
रीत धरेॅ
युग-युग के
मधुमासो
ग्रीष्म नै
बरसातो
शरदो-हेमन्तो भी
आरो भी शिशिरो
जागी जाय फेरू सें
मधुर-तिक्त
लवण-अम्ल
कटु आरो
संगो कसाय
आरो ऐश्वर्य-यश
राजौ भी
मंत्री भी
देश-कोष
सेनाओ
रवि-सोम
मंगल-बुद्ध

वृहस्पति
शुक्र शनि
पूरब भी
पश्चिम भी
उत्तर भी
दक्षिण भी
आग्नेय
नैऋत्व
वायव्य
आ ईशान।“

”जागी जाय
नवोनिधि
पद्मे नै
महोपद्म
शंख-मकर
कच्छप भी
भी मुकुन्द
कुन्द-नील
आरो बर्च्च
आरो भी
नवो भक्ति
मंत्र उठेॅ
भिरगु के
अत्रि के
पुलह-कृतु
नारद के
अंगिरा के।“

”जागोॅ हे
ग्रामदेव
जागी जाय
होनै चैत
आरो वैशाख
जेठो-आषाढ़ो
सावन भी
क्वार आरो
कातिक भी
अगहन भी
पूसो ठो
माघो ठो
फागुन भी।“

मीन-मेष
वृष-मिथुन
कर्क-सिंह
कन्या संग
तुला भी
वृश्चिक भी
धनु-मकर
आरो कुम्भ
लहलहाय
मानव मन
खेत-बारी
पूर्ण हुएॅ
पूर्ण हुऐं
नदी-नदी
मास-सदी।“

”है जे आय
उगलोॅ छै
सुरजोॅ के
लाल किरिन
हाँसै छै
कोशी जल
खल-खल-खल
होनै केॅ
हाँसै ई
हमरोॅ गाँव
हमरोॅ देश
जागोॅ हे
ग्रामदेव।“