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जागो और जगाओ / अब्दुल रहमान सागरी
Kavita Kosh से
जागो और जगाओ!
बीत चुकीं आलस की घड़ियाँ,
जाग उठीं अब सारी चिड़ियाँ!
जागे फूल खिली अब कलियाँ!
तुम भी जागो आओ,
जागो और जगाओ!
जाग रहा है कोना कोना
फिर अपना यह कैसा सोना!
क्या सोकर है सब कुछ खोना!
उठो होश में आओ!
जागो और जगाओ!
जागे तुर्क, उठे जापानी,
सँभल चुके हैं अब ईरानी!
तुमको है कैसी हैरानी!
आगे कदम बढ़ाओ!
जागो और जगाओ!