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जागो है श्रमिक वृन्द / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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जागो हे श्रमिक वृन्द॥

अधिकाधिक उत्पादन
सुविधा का संपादन।
स्वर्णिम आगत का बन
जाओ अनुपम साधन।

जन जन के मानस में
खिल जायें सुखारविंद।
जागो हे श्रमिक वृन्द॥

ऐसा कुछ योजन हो
भूखों को भोजन हो।
उन्नत हो देश और
सुख का संयोजन हो।

सुविधा के शतदल पर
झूमे मन भ्रमर वृंद।
जागो हे श्रमिक वृन्द॥

 जड़ता विस्थापित हो
सुख ही सुस्थापित हो।
छिप जाये अवनति तम
स्वेद रश्मि विकसित हो।

विहँस उठेय घर आंगन
चमके अभिनव अलिंद।
जागो हे श्रमिक वृन्द॥