जागो / विमल राजस्थानी
जागो, भारत के नौजवान जागो
जब ‘प्राण राष्ट्र का’ अपना पौरूष खोता है
गंगा गुहारती, वृद्ध हिमालय रोता है
धरती का रोम-रोम करता है आर्तनाद
रे देख ! तुम्हारे आँगन में क्या होता है ?
दुःशासन चहुँदिशि भरे, कर रहे चीरहरण
ओ वज्रकाय ! ओ राष्ट्रप्राण !! जागो
जागो, भारत के नौजवान ! जागो
रे तार-तार हो रही चुनरिया धानी है
कृशकाय डगमगाती माँ, दृग में पानी है
इतिहास साक्षी है फाँसी के फन्दों का
बन कर मशाल जल रही अमर कुर्बानी है
तुम दुहरा दो इतिहास, क्रान्ति के अग्रदूत !
ओ सिंहवाहिनी के कृपाण ! जागो
जागो, भारत के नौजवान ! जागो
यह प्रजातंत्र है नहीं, लूट का नाटक है
नैया औंधी, मांझी मदान्ध है, चौपट है
रोको-रोको, सहस्रबाहुओं को रोको
नीलाम कर रहे घर की खिड़की, चौखट हैं
सतृष्ण हेरते तुम्हें राष्ट्र के कोटि नयन
ओ भारत के तरूणो ! महान् !! जागो
जागो, भारत के नौजवान ! जागो
जब दुखी राष्ट्र का ओज टंकरित होता है
सुख हँसने लगता, दुख सिर धुनता, रोता है
तरूणाई जब अँगड़ाई लेने लगती है
आकाश सितारों की जयमाल पिरोता है
साँसों की गरमाहट से शैल पिघलते हैं
है त्रहिमाम का रोर, त्राण ! जागो
ओ सिंहवाहिनी के कृपाण ! जागो
जागो भारत के नौजवान जागो