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जाग भईया मोर / हरिवंश प्रभात

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जाग भईया मोर, जाग बहिनी मोर,
ललकी किरिनियाँ जगावे भोरे-भोर।

तलवा तलइया में, कमल मुसकइले
पंखुड़ी गुलाब के, सुगन्ध महकइले,
सोना के चिरइयाँ मचावे लगले शोर।
जाग भईया मोर....

भंवरा बटोहिया, भुलल राह भेटले
आसमान अंचरा में तरेगन समेटले,
सारदा जी बीना बजावे चारो ओर।
जाग भईया मोर....

सपना में अपना से मेल होई गइले,
जिनगी के रहिया इंजोर होई गइले,
आलस में देहिया दुखाये पोरे-पोर।
जाग भईया मोर....

बगिया में कोयल पपीहा बोले नदिया,
पुरुब में उषा रानी पिसली हरदिया,
उठ के पकड़लऽ करमवा के डोर।
जाग भईया मोर....