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जाट का मैं लाडला / हरियाणवी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जाट का मैं लाडला तिरखा लगी सरीर

अगन लगी बुझती नईं, बिना पिए जल-नीर

बिना पिए जल-नीर,--रस्ते में कुयाँ चुनाया

किस पापी ने यै जुल्म कमाया, उस पै डोल ना पाया!


भावार्थ

--'मैं जाट पिता का लाड़ला पुत्र हूँ, मुझे प्यास लगी है । मेरे मन में जो आग लगी है वह बिना पानी पिए नहीं

बुझेगी । हालाँकि रास्ते में पक्का कुआँ बना हुआ है लेकिन न जाने किस पापी ने यह ज़ुल्म किया है कि उस पर

डोल नहीं रखा है ।