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जाड़ा / इवान सूरिकफ़ / अनिल जनविजय

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सफ़ेद बर्फ़ फूली-फूली
भँवर सी हवा में घूम रही
और पृथ्वी पर गिरकर के
वो धरती को चूम रही

सुबह-सुबह देखी मैंने
सब तरफ़ बर्फ़ बिछी हुई
धरती ढकी हुई थी उससे
सफ़ेद कपड़ों में छुपी हुई

वन ने भी पहनी टोपी सफ़ेद
ख़ुद बर्फ़ के नीचे खो गया
हिम ढाँप के ऊपर से नीचे तक
वो गहरी नींद सो गया

रे ईश्वर ! दिन छोटे हो गए
सूरज भी पहले से कम चमके
पाला गिरे ऊपर से भारी
पड़े जाड़ा, मोती-सा झमके

हलधर-किसानों ने अपनी
बर्फ़गाड़ी निकाली-खोली
टीले बर्फ़ के बना रही
खेले बच्चों की टोली

बहुत समय से था किसान को
ठण्ड औ’ जाड़े का इन्तज़ार
घास-फूस की झोंपड़ी को अपनी
बन्द किया उसने भीतर- बाहर

ताकि दरारों से होकर हवा
घुसे नहीं घर के अन्दर
हिम तूफ़ानों से बचना है
सरदी से बचना अकसर

इन्तज़ाम ये सारा करके ही
किसान के मन को आया चैन
अब डरता नहीं वो जाड़े से
पाला पड़े चाहे दिन-रैन

1880

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही गीत मूल रूसी भाषा में पढ़िए
       Иван Суриков
             Зима

Белый снег, пушистый
В воздухе кружится
И на землю тихо
Падает, ложится.

И под утро снегом
Поле забелело,
Точно пеленою
Всё его одело.

Тёмный лес что шапкой
Принакрылся чудной
И заснул под нею
Крепко, непробудно…

Божьи дни коротки,
Солнце светит мало, —
Вот пришли морозцы —
И зима настала.

Труженик-крестьянин
Вытащил санишки,
Снеговые горы
Строят ребятишки.

Уж давно крестьянин
Ждал зимы и стужи,
И избу соломой
Он укрыл снаружи.

Чтобы в избу ветер
Не проник сквозь щели,
Не надули б снега
Вьюги и метели.

Он теперь покоен —
Всё кругом укрыто,
И ему не страшен
Злой мороз, сердитый.

1880 г.