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जाड़े बेहाल / अनिल कुमार झा
Kavita Kosh से
केकरा से कहोॅ कहौं आपनोॅ हाल,
चद्दर रजाय नै छै जाड़े बेहाल।
सुरजोॅ ते रोज-रोज आबेॅ नै पारै
लागै छै कनियांय बैठी दुलारै,
सभ्भे के कष्ट दै छिपलोॅ छिनाल
चद्दर रजाय नै छै जाड़ै बेहाल।
दिनोॅ पर दिन केना पार करै छी
राती ठिठुरी सिसकारी पारै छी,
बोरसी के आगिन ते ढंडा, कंगाल
चद्दर रजाय नै छै जाड़ै बेहाल।
सिरसिर बयार वहै बहले जाय
रूइया में छिपयोॅ हो कहले जाय,
शिशिर के जाड़ा ई जी के जंजाल
चद्दर रजाय नै छै जाड़ै बेहाल।
लारोॅ न छपरी पेॅ, शीतै नहाय
चँदा चँदनियाँ न जरियो सोहाय,
आँखी में लोर नै, बचलै कंकाल
चद्दर रजाय नै छै जाड़ै बेहाल।