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जाड़ रैया / परमानंद ‘प्रेमी’

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जाड़ रैया तोरा डरें घुकड़ी लगैया।
नैं तोसक छ’ नै छ’ तकिया नैह’ रेजैया॥

धिया-पुता क’ बान्हि गाँती
दौं गद्दी प’ घोलटाय,
बुढ़बा-बुढ़िया तापै बोरसी
बीड़ी पीयै छै सुलगाय।

जहाँ सुतै छी, वहीं जोरै छी बछबा, बकरी-गैया।
जाड़ रैया तोरा डरें घुकड़ी लगैया॥

लरुवा केरऽ तकिया बनैलों
लरुहै केरऽ बिछौना,
होकरै प’ सब जीब लोट-पोट करै छी
की कुटुम्ब की पहुना॥

‘प्रेमी’ के गीत सभ्भैं गाब’ लगै छी जब’ बहै पुरवैया।
जाड़ रैया तोरा डरें घुकड़ी लगैया।