भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाड़ रैया / परमानंद ‘प्रेमी’
Kavita Kosh से
जाड़ रैया तोरा डरें घुकड़ी लगैया।
नैं तोसक छ’ नै छ’ तकिया नैह’ रेजैया॥
धिया-पुता क’ बान्हि गाँती
दौं गद्दी प’ घोलटाय,
बुढ़बा-बुढ़िया तापै बोरसी
बीड़ी पीयै छै सुलगाय।
जहाँ सुतै छी, वहीं जोरै छी बछबा, बकरी-गैया।
जाड़ रैया तोरा डरें घुकड़ी लगैया॥
लरुवा केरऽ तकिया बनैलों
लरुहै केरऽ बिछौना,
होकरै प’ सब जीब लोट-पोट करै छी
की कुटुम्ब की पहुना॥
‘प्रेमी’ के गीत सभ्भैं गाब’ लगै छी जब’ बहै पुरवैया।
जाड़ रैया तोरा डरें घुकड़ी लगैया।