जातरा रै आदि-अंत सूं म्यनो मांगणो / मालचन्द तिवाड़ी
वो अेक है !
अर उणरी
नीं हुवै गिणती !!
नीरज दइया री लांबी कविता ‘देसूंटो’ इण गिणती में नीं आंवतै ‘अेक’ सूं अेक लांबो, अणथक अर बेजा कठिन संवाद है; नीं, संवाद नीं, इण अेक नैं सम्बोधित संलाप ! इण संलाप री सिरजणा है अेक गैरी व्यथा कै मिनख जद मिनख रूप रचीज’र आपरी जीवण-जातरा शुरु करै तद सांस अर सुपनां रै इण देस मांय अपरै किणी तात्त्विक देस सूं ‘देसूंटो’ तो नीं भुगतै ? फगत विषय री दीठ सूं ई नीं, घड़त अर मुहावरै री दीठ सूं ई राजस्थानी कविता मांय आ लांबी कविता अेक नुंवो श्रीगणेश है। नीरज री आ कविता इणी जातरा, जीवण-जातरा सूं उठतै सवालां रै सामीं ऊभी आपरो दुख रचै-
इण देस
म्हैं सोधूं कथा
सांस रै रचाव री
अर हांती दांई
आवै पांती म्हारै
थोड़ा’क सुपनां
सुपनां रै पांण मिनख हूंस सूं जीवै अर सुपनां री आपरी विडम्बना आ है कै वै हांती दांई पांती आवै- किणी थाळ मांय परोसीज’र सामीं नीं मेलीजै। अरथ ओ कै सुपना अेक तरै सूं आपणै सगळै संसारू संबंधां रो सार हुवै, सुपना तकात री इण संसार-सापेक्षता नैं नीरज रो कवि अेक साव निजू सवालिया दीठ सूं देखै। सांस अर सुपनां रै ट्रैक माथै चालती आ जातरा आपरै आरंभ अर अंत दोवूं सूं अनथक मुठभेड़ करती आगै बधती जावै।
इण कविता रो अेक औरूं फूटरापो ओ है कै आपरी सगळी तात्त्विक-सी विषय-वस्तु रै उपरांत ई आ पाठक कै श्रोता मिनख री संवेदना सूं घणी अळगी नीं नीसरै। इण रो कारण ओ है के आ कविता आपरै ‘देसूंटै’ रै देस री व्यथा सूं ई उपजै, उण अरूप रै अणजाण देस सूं नीं जिण सूं कै आ आपरी व्यथा रा सगळा म्याना मांगणी चावै। अठै कवि-कर्म रो चात्रक व्यापर सरावजोग है कै नीरज दइया आपरै लौकिक सिरजक अर्थात जलम रै बीज-कारण पिता अर पारलौकिक विधाता अर्थात संसार रै इच्छा-कारक ईश्वर दोवूं रै श्लेष नैं अचूक ढाळै परोट्यो है। ‘सांवरा’ नैं संबोधित आ कविता इणी श्लेष रा तांतण इण ढब बुणै कै कविता रो अेक साव नुंवो भाषिक पैटर्न कै डिजायन आपां सामीं हवळै-हवळै चरूड़ हुवंतो जावै।
लांबी कविता मांय दुहराव री जोखाम नै टाळणो अेक ठाडी चुनौति हुया करै। इण लांबी कविता रै सीगै साफ दीसै कै नीरज इणनैं अेक इकाई ढाळै सामीं राखण में पूरी शैल्पिक खेचळ करी है। आपरै ऊंडै सरोकार, आपरी संवेदनात्मक पकड़ अर आपरी शैल्पिक सोय रै कारण ‘देसूंटो’ लांबी कविता राजस्थानी भाषा री आंवती कविता रो अेक सबळो अर बधावो गावणजोग दीठाव है। म्हैं इण ऊर्जा अर ऊरमा रो साखी बणतां म्हारो भाग सराऊं।
मालचन्द तिवाड़ी