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जाता हूँ सोने / अज्ञेय
Kavita Kosh से
अकारण उदास भर सहमी उसाँस अपने सूने कोने
(कहाँ तेरी बाँह?) मैं जाता हूँ सोने।
फीके अकास के तारों की छाँह में बिना आस, बिना प्यास
अन्धा बिस्वास ले, कि तेरे पास आता हूँ मैं तेरा ही होने।
अपने घरौंदे के उदास सूने कोने
मैं जाता हूँ सोने।
दिल्ली, 4 अगस्त, 1952