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जाते समय / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
जाते समय
खाली नहीं छोड़ कर जाऊंगा
कमरे को मैं
एक दीवार पर छोड़ जाऊंगा
मुस्कराते बच्चे का पोस्टर
एक दीवार पर चिपकाई
ओशो की तस्वीर
और दीवारों पर जगह-जगह लिखीं
अपनी कविताओं की
उदास पंक्तियाँ
कमरे को
बिलकुल खाली नहीं छोड़ कर जाऊंगा मैं
कुछ न छोड़ कर भी
छोड़ जाऊंगा बहुत कुछ
जो मेरे बाद रहेगा इस कमरे में
मेरे बाद नया आएगा
इस कमरे में जो
नहीं मालूम कैसा होगा वो
हो सकता है
फाड़ कर फेंक दे
वह ओशो की तस्वीर
लेकिन कभी नहीं उतार पाएगा वह
मुस्कराते बच्चे का पोस्टर
मेरी कविताओं की पंक्तियों में
शायद वह मुझे पढ़ने की कोशिश करे
या यह भी हो सकता है
कि वह मालिक को
दुबारा सफेदी करवा देने के लिए कहे
सब कुछ मिटा देने के लिए कहे।