भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जादुई यह आइना है / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
हाँ, सुनो
इस आइने का
है यही इतिहास, साधो
यह नदी-तट पर मिला था
हमें रेती में धँसा
अक्स इसमें था किसी का
देख हमको वह हँसा
सुनो, तबसे
सह रहे हैं
हम वही उपहास, साधो
अक्स पहले था पराया
अब हमारा हो गया
आइने में देखकर
चेहरा मिला हमको नया
आम थे हम
देख उसमें
हो गये थे खास, साधो
जादुई यह आइना है
कैद हम इसमें हुए
दिन मिले हमको इसी में
रोज़ चिनगारी-छुए
है चिताओं के
नगर में
उन्हीं की बू-बास, साधो