भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जादूगर और डाकू / श्रीनाथ सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चीन देश का जादूगर,
जाता था जब अपने घर।
मिले राह में उसको डाकू,
लिए तेज तलवार व चाकू।

बिल्ली जैसे चूहे पर,
यों दोनों झपटे उस पर।
जादूगर हो गया खड़ा,
अचरज उसको हुआ बड़ा।

किया देवता का सुमिरन,
मंत्र पढ़ा उसने फ़ौरन।
पिघलीं तलवारें ज्यों पानी,
हुई डाकुओं को हैरानी।