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जादू-कथा / शशिकान्त गीते
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भैया रे ! ओ भैया रे !
है दुनिया जादू-मन्तर की.
पार समन्दर का जादूगर
मीठा मन्तर मारे
पड़े चाँदनी काली, होते
मीठे सोते खारे
बढ़ी-बढ़ी जाती गहराई
उथली धरती, खन्तर की ।
अपनी खाते-पीते ऐसा
करे टोटका-टोना
कौर हाथ से छूटे, मिट्टी
होता सारा सोना
एक खोखले भय से दुर्गत
ठाँय लुकुम हर अन्तर की ।
उर्वर धरती पर तामस है
बीज तमेसर बोए
अहं-ब्रह्म दुर्गन्धित कालिख
दूध-नदी में धोए
दिग-दिगन्त अनुगूँजें हैं मन
काले-काले कन्तर की ।
पाँच पहाड़ी, पाँच पींजरे
हर पिंजरे में सुग्गा
रक्त समय का पीते
लेते हैं बारूदी चुग्गा
इनकी उमर, उमर जादूगर
जादू-कथा निरन्तर की ।