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जानकी रामायण / भाग 23 / लाल दास

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चौपाई

गोपीजनक भक्ति मति देखि। उद्धव लज्जित भेला विशेषि॥
तखन कहल राधासौं जाय। हे श्रीमति करु एक उपाय॥
अहँकाँ अछि अति कृष्णक प्रेम। प्राणोपरि तनिके व्रत-नेम॥
बिनु तनिकेँ नहि छुटत कलेश। तकर उपाय बिचारल बेश॥
चढ़ एहि रथपर हम अगुआय। कृष्णक निकट छै छी पहुँचाय॥
हम तनिके छी सखा प्रधान। अहँक करायब तहँ सनमान॥
राधा तनिक अपटुता जानि। लगलिह कहय कथा गुणखानि॥
हम नहि चढ़ब रथोपरि फेरि। त्रेतामे भेल अति अन्धेरि॥
छलहुँ जखन सीताक शरीर। कृष्णे रहथि राम रघुबीर॥
हमर रहय अन्तःपुर बास। पंचम मासक गर्भ प्रकाश॥
रथपर लक्ष्मण लेल चढ़ाय। कहल चलू बन देब देखाय॥
हम नहि किंचित बुझल प्रपंच। रथ चढ़ि वन चल गेलहुँ संच॥
लक्ष्मण बनमे देलनि त्यागि। लगलहुँ सहय पतिक विरहागि॥
पड़ल विपति दुख सहल न जाय। मुनिकन्या सभ भेलि सहाय॥
दुइ बालक भेल हमरा ततय। रक्षक बालमीकि मुनि जतय॥
बड़ दुख सहलहुँ राम-वियोग। पति भेटक नहि भेल संयोग॥
पंचवटीमे पुनि एक बेरि। छलसौं रावण कयल अन्धेरि॥
भिक्षुक बनि हमरा भोतिआय। माया-रथपर लेल चढ़ाय॥

दोहा

चढ़ितहि रावण रथ उपर हरि लंका लय गेल।
वन अशोकमे राखि खल कति हमरा दुख देल॥

सोरठा

हे उद्धव सज्ञान हम नहि पुनि-पुनि रथ चढ़ब।
बड़ दुखदायक यान हमरा सभटा बुझल अछि॥

चौपाई

सुनु उद्धव जोड़ल दुहु हाथ। कहल राखि राधा-पद माथ॥
कहलहुँ हे वृषभानु दुलारि। हरल कोना दशशीश भिखारि॥
करु श्रीमति रामायण गान। जे सुनि हो हमरा कल्याण॥
महाबीर मारुति हनुमान। तीनू लोक जनिक यश जान॥
मन दय रामायण सुनि लेल। अजर अमर चिरजीवी भेल॥
शुक अण्डा गण्डा छल भेल। राम नाम ध्वनि जीवन देल॥
शिवमुखसौं रामायण सूनि। शुकाचार्य्य भेला भल मूनि॥
याज्ञवल्क्य मुनि मिथिलावासि। रामायण सुनलेँ सुख राशि॥
जानल सीता-रामक तत्त्व। तेहि प्रसाद बड़ भेल महत्त्व॥
बालमीकि मुनि ब्याध छलाह। रामायण सुनि ब्रह्म भेलाह॥
आदि कवीश्वर विचरल छन्द। कयलनि सकल लोक सानन्द॥
महिमा रामायणक अनन्त। ब्रह्मादिक नहि पाओल अन्त॥
हमरा से शुभ कथा सुनाउ। सीता रूप अपूर्व देखाउ॥
सीता - महिमा परमोदार। सुनल मुनिक मुखसौं विस्तार॥
सम्प्रति वन्दावनमे आज। हम श्रीमुखेँ सुनब निर्व्याज॥
प्रगट करू से चरित विशेष। हरलक रावण धय कोन वेष॥
हमरा जानि अपन निज दास। करु करु श्रीमति कथा प्रकाश॥

दोहा

सुनि राधा बाधारहित बिहुँसि कहल बड़ बेश।
सावधान रहि देख अहँ हमर चरित्र विशेष॥

चौपाई

निज माया संचर कय देल। पंचवटी वृन्दावन भेल॥
यमुना भेलि गोदावरि धार। अति अपूर्व देखल विस्तार॥
राधा भेलिह जानकी रूप। देखल उद्धव तेज अनूप॥
सीता तेज भेल उद्योति। झल फल कर उद्धव दृग ज्योति॥
छन ताकथि छन मूनथि नयन। त्रास बढ़य लागल नहि चयन॥
कुंज-भवन भेल कुटी विशेष। ततय पड़ल एक रक्षा रेख॥
बैसलिह सीता रेखा बीच। आयल भिक्षुक रावण नीच॥
यती वेष कहलक अगुताय। हे जानकि भिक्षा देल जाय॥
सीता कपयित लय फल-मूल। लगलिह देमय कहल प्रतिकूल॥
बान्धल भिक्षा हम नहि लेब। फिरब धर्मलोपे कय देब॥
अतिथि विमुख जौं जाय निराश। सकल गहस्थक धर्म्मविनाश॥
जनितहि छी जानकि सभ धर्म्म। तखन करै छी की ई कर्म्म॥
सुनि सीता अयिलिह बहराय। रावण भेल भयंकरकाय॥
दश गोट शीश भुजा भेल बीश। कयल अन्धार दशदीश॥
से देखितहि उद्धव अकुलाय। डरेँ पड़यला ज्ञान गमाय॥
वेगवान कहयित हा कृष्ण। चटपट जीभ तृषा बढ़ तृष्ण॥
अहमिति ज्ञानक छल अधिकाय। से सभ भयसौं गेल हेराय॥
पड़ले रहल अश्व रथ यान। विकल पड़यला लयकेँ प्रान॥
घुरि नहि ताकथि दौड़ल जाथि। श्रीमति देखि देखि हसथि भभाथि॥
रहु रहु ठाढ़ कहथि कय शोर। ऊधो जानथि धयलक चीर॥
दशकन्धरक त्रास अति बाढ़। जहँ देखथि तहँ रावण ठाढ़॥
ऊधोकाँ व्यापल अति त्रास। रावण डरसौं जानल पास॥

दोहा

अहँकाँ ज्ञानक सकल सुख भेल जखन संहार।
तखन प्रसन्ना राधिका कृष्ण कयल निर्धार॥

चौपाई

तेहिखन माया देल उठाय। वृन्दावन भेल पूर्वक प्राय॥
नहि रावण नहि दण्डक देश। बैसलिह राधा पूर्वक भेश॥
से पुनि कहलनि कय अति शोर। फिरु फिरु उद्धव की छी घोर॥
वृािा बढ़ल मनमे की त्रास। क्यो नहि दुष्ट एतय हो भास॥
त्रेतामे छल रावण दुष्ट। तकरा मारल राघव रुष्ट॥
तखन किअय मन संशय भेल। किअय भेल एत गोट भय शोक॥
घुरु घुरु उद्धब अहँ सज्ञान। हसत कहत जग बड़ अज्ञान॥
जखन कहल राधा कय बेरि। तकलनि उद्धव मुह फेरि॥
नहि देखल रावण दशशीश। एक ओ उपद्रव नहि तहि दीश॥
राधाकाँ देखि धैरज भेल। अयला उद्धव संशय गेल॥
बैसला राधा-सन्निधि जाय। घुरि फिरि बन ताकथि अकुलाय॥
मन पड़ छन-छन रावण रूप। संशय एहन नुकायल चूप॥
पुनि से रावण आबि न जाय। मनमे खटका रहय सदाय॥
जौं दशमुख हो एहि बन बीच। आबि धरत हमरा से नीच॥

दोहा

राधा उद्धवकाँ तखन दिव्य दृष्टि दय देल।
शुद्ध विषय वृन्दावनक से सभटा देखि लेल॥

चौपाई

शक्तिक महिमा बड़ गोट जानि। राधाकाँ जगदम्बा जानि॥
लगला विनय करय कर जोड़ि। शुद्ध भाव मनसौं छल छोड़ि॥
हे श्रीमति हम बाल अबोध। नहि हमरा महिमा गुण बोध॥
सर्वेश्वरि हम जानल साँच। अहिँ नचबै छी माया नाच॥
हम अज्ञान सुनाओल ज्ञान। क्षमा करब ई चूक अमान॥
सीता-रूपक दर्शन देल। ब्रह्मानन्दक फल भल भेल॥
कृष्ण-सहित अपने हे माय। हृदय-कमलमे रहू सदाय॥
देखल अपनेक यज्ञ अनूप। कहब कृष्णकाँ से अनुरूप॥
कृपा करिय आज्ञा देल जाय। विभुकाँ दी सभ कुशल सुनाय॥
ई कहि उद्धव कयल प्रणाम। चलला रथ लय मधपुर गाम॥

सोरठा

कृष्ण निकट से जाय ज्ञानक अहमिति छोड़ि सभ।
देल चरित्र सुनाय राधा यज्ञक सकल भल॥

चौपाई

एहि विधि गेल कतेक दिन बीति। रहला हरि मधुपुर भल रीति॥
तखन भेल कारण कय गोट। बसला कृष्ण समुद्रक ओट॥
बनल कतेक मणि महल अपार। पड़ल नाम द्वारावति द्वार॥
कयल कृष्ण तहँ कतेक विवाह। बढ़ल प्रजा सन्ततिक प्रवाह॥
सकल लोकमे अति आनन्द। सुर नर मुनिक छटल दख फन्द॥
स्वर्ग मर्त्य धरि लागल बाट। सभ दिन आबथि अमरक ठाट॥
किन्नर आदिक गाब सुगीति। नृत्य करय अप्सरा सप्रीति॥
देखथि कृष्ण सहित परिवार। अति आनन्द द्वारावति द्वार॥
कृष्णक रानी आठ प्रधान। तनि सभहिक मन ई अभिमान॥
हमर स्वरूप विदित संसार। नहि हमरा सनि सुन्दरि दार॥
हमरहि कृष्णक अति अनुराग। हमरहिमेँ कृष्णक मन लाग॥
हमरहि प्रीति विवश यदुवीर। नहि िहमरा सनि नारि सुधीर॥

दोहा

सौभाग्यक मदसौं कयल एहि विधि मन अनुमान।
बुझल गर्वहरी सकल अन्तःस्वर भगवान॥