जानता वह काम सब बाजीगरी का है / नन्दी लाल
जानता वह काम सब बाजीगरी का है।
खेल यह सारा उसी कारीगरी का है।
आपको अच्छी लगेगी या बुरी लेकिन,
बात करने का यही अपना तरीका है।
जोड़कर कुनबा बनाया भानुमत्ती ने,
ईंट है उसकी लगी रोड़ा कहीं का है।
आँकड़ों पर इस तरह सन्देह मत करिये,
पारदर्शी साफ सब ब्यौरा वहीं का है।
शाम तक जो चाव से खाते रहे दोनों,
स्वाद अब खट्टा हुआ कल के दही का है।
घूस, अत्याचार की नित बोतलें पीकर,
हो गया अपने लहू का रंग फीका है।
देख आये थे खटारा भूल जाओ अब,
आजकल रुतबा हमारी लग्जरी का है।
नाचती है इन्द्र के दरबार जाकर जो,
हाथ में रूमाल अपने उस परी का है।
सामना उसका करेगा वह भला कब तक,
द्वार जिसके फूस का टूटा फरीका है।
कृष्ण पर तो लोग नाहक दोष मढ़ते है
प्रेत छाया गोपियों पर बाँसुरी का है।
और लिख जाती अभी दस बीस तो लेकिन,
शेर अब जो पढ़ रहा हूँ आखिरी का है।