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जानते हो / अंशु हर्ष
Kavita Kosh से
विचार कभी ठहरते नहीं है
चलते रहते है अनवरत
जीवन में आने के साथ ही
शुरू हो जाता है ये सिलसिला
विचारों के धागे उलझते जाते है
अंतर्मन में
खुद से बात करने लगते है हम
वो बात जो कोई दूसरा समझ नहीं सकता
खुद से कह लेते है हम
और कोई बात कहने से पहले एक शब्द
एक सम्बोधन देती हूँ मैं
जानते हो ...
और फिर अपनी बात कह जाती हूँ
ये जानते हो का सिलसिला कब शुरू हुआ पता नहीं
लेकिन चलेगा जब तक मैं हूँ
जानते हो ...
एक अहसास है जो
मेरा सबसे करीब है, सबसे अज़ीज़ है
ये सिर्फ़ अहसास है निराकार
उस अहसास का आकार रूप
वो जो कभी था ही नहीं ...