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जाना था रास्ते में अगर छोड़ कर मुझे / सुरेश चन्द्र शौक़
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जाना था रास्ते में अगर छोड़ कर मुझे
हमराह क्यों लिया था मिरे हमसफ़र मुझे
होने लगा है रोज़ ये रंगीन हादसा
मुड़—मुड़ के देखता है कोई देख कर मुझे
गुम हूँ न जाने कौन से आलम में इन दिनों
अपनी ख़बर है अब न तुम्हारी ख़बर मुझे
तुमने तो इत्तिफ़ाक़ से देखा था इस तरफ़
बरबाद कर गई है तुम्हारी नज़र मुझे
ऐ ‘शौक़’ पी थी उनकी निगाहों से एक दिन
महसूस हो रहा है अभी तक असर मुझे.