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जाने अजीब कौन सी ये बात हो गयी / रंजना वर्मा

जाने अजीब कौन सी ये बात हो गयी
वो सामने हुए न मुलाकात हो गयी

जब बेगुनाह हो के भी कुछ कह नहीं सका
ग़म की मिले शराब बहुत रात हो गयी

आये कभी जुबां पे न यूँ दिल की आरजू
अनजाने में ही उन से मेरी बात हो गयी

माँगा न कभी आपसे हमने कोई तोहफ़ा
है बेरुखी भी आप की सौगात हो गयी

जो कुछ भी न हो जाये यहाँ आपके बग़ैर
बादल बिना भी देखिये बरसात हो गयी

मुद्दत के बाद थी जगी उम्मीद वस्ल की
गुजरी यूँ सदी जैसे कि लम्हात हो गयी

शतरंज की बिसात बनी जैसे जिंदगी
शह है मिली किसी को कहीं मात हो गयी