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जाने अब किस देस मिलेंगे ऊँची / मोहसिन नक़वी
Kavita Kosh से
जाने अब किस देश मिलेंगे ऊँची जातों वाले लोग?
नेक निगाहों, सच्चे जज्बों की सौगातों वाले लोग
प्यास के सहराओं में धूप पहन कर पलते बंजारों!
पलकों ओट तलाश करो, बोझल बरसातों वाले लोग
वक़्त की उड़ती धूल में अपने नक्श गंवाए फिरते हैं,
रिम-झिम सुबहों, रोशन शामों, रेशम रातों वाले लोग
एक भिखारन ढूँढ रही थी रात को झूठे चेहरों में,
उजले लफ़्ज़ों, सच्ची बातों की खैरातों वाले लोग
आने वाली रोग रुतों का पुरसा दें हर लड़की को!
शहनाई का दर्द समझ लें गर बारातों वाले लोग
पत्थर कूटने वालों को भी शीशे जैसी सांस मिले!
'मोहसिन' रोज़ दुआएं मांगें ज़ख़्मी हाथों वाले लोग