भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाने कब?? / श्वेता राय
Kavita Kosh से
जाने कब मन प्रमुदित होगा, मेघ गगन में छायेंगें।
जाने कब ये मेघदूत सब, तेरी छवि दिखलायेंगें॥
रिमझिम बूंदों की बारिश से, अंतस भीगा जायेगा।
प्रेम जलज मन नयनो में, सौरभ को बिखरायेगा॥
जाने कब कोयल कूकेगी, झींगुर शोर मचायेंगे।
जाने कब ये मेघदूत सब, तेरी छवि दिखलायेंगे॥
सूख रही मन की सरिता अब, पंकिल जीवन धारा है।
सुमनों पर झिलमिल करती जो, बूँदें वही सहारा है॥
जाने कब पुरवा बहकेगी, विद्युत कब डरवायेंगे।
जाने कब ये मेघदूत सब, तेरी छवि दिखलायेंगे॥
उर उमंग उन्मादित होगा, प्रेम लिए जब आओगे।
शीतल आलिंगन देकर प्रिय, प्रीत अंग सरसाओगे॥
जाने कब बदरा नभ आकर, मधु बूँदें बरसायेंगे।
जाने कब ये मेघदूत सब, तेरी छवि दिखलायेंगें॥