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जाने कहाँ गईं मुस्कानें देकर बौनी ख़ामोशी / हरेराम समीप

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जाने कहाँ गईं मुस्कानें देकर बौनी ख़ामोशी
खुशियों के धागे में हमको पड़ी पिरोनी ख़ामोशी

अब के लफ़्ज़ दराँती‚ भाले‚ लाठी लेकर आए हैं
जीवन के हर चेहरे पर है तनी घिनौनी ख़ामोशी

पत्ते थर¬थर काँप रहे हैं‚ सहमी–सहमी शाखें हैं
बगिया के पेड़ों पर ठहरी इक अनहोनी ख़ामोशी

हमने अपने प्यारे रिश्ते भाव–ताव कर बेच दिये
बदले में घर ले आए हैं आधी–पौनी ख़ामोशी

सभी शिकायत करते हैं‚ ये मौसम तो बर्फ़ीला है
लेकिन कोई नहीं चाहता यहाँ बिलोनी ख़ामोशी

कुछ तो बोलो‚आपस में तुम बातचीत मत बंद करो
पड़ जाएगी संबंधों को वर्ना ढोनी ख़ामोशी