Last modified on 16 दिसम्बर 2017, at 01:49

जाने कहाँ गए वो दिन / हसरत जयपुरी

जाने कहाँ गए वो दिन
कहते थे तेरी राह में नजरों को हम बिछाएँगे
चाहे कहीं भी तुम रहो
चाहेंगे तुम को उम्र भर तुमको ना भूल पाएँगे

मेरे क़दम जहाँ पड़े सजदे किए थे यार ने
मुझको रुला-रुला दिया जाती हुई बहार ने

अपनी नजर में आज कल दिन भी अन्धेरी रात है
साया ही अपने साथ था साया ही अपने साथ है

जाने कहाँ गए वो दिन
कहते थे तेरी राह में नजरों को हम बिछाएँगे

कल खेल में हम हो न हों गर्दिश में तारे रहेंगे सदा
ढूँढ़ोगे तुम, ढूँढ़ेंगे वो, पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा

रहेंगे यहीं अपने निशाँ, इसके सिवा जाने कहाँ
जी चाहे जब हमको आवाज़ दो, हम हैं वहीं, हम थे जहाँ

हम हैं वहीं, हम थे जहाँ इसके सिवा जाना कहाँ