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जाने कितना इस जीवन में / प्रमोद तिवारी

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जाने कितना इस जीवन में
जाना है अनजाना है
मैं दरपन
मेरी मजबूरी
हर चेहरा अपनाना है

मुझमें राजा भी रहता है
मुझमें रहे भिखारी भी
मुझमें एक नदी ऐसी जो
मीठी भी है
खारी भी
इसीलिए मेरे घर भीतर
सबका आना जाना है

मुझमें है
शिकार भी मेरा
मुझमें मेरा
शिकारी भी
मुझमें ही
सारे जप-तप हैं
मुझमें ही
मक्कारी भी
सारा दोष स्वयं
का ही है
अब जाकर
पहचाना है

असली चेहरा भूल गये
कुछ इतनी
लीपा-पोती की
जितनी सीधी बात थी
उस पर
उतनी मोटी पोथी की
अब पन्ने पर पन्ने पलटो
समझो जो समझाना है।