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जाने कितनी कवितायें / संगीता गुप्ता

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जाने कितनी कविताएँ
अ़जन्मी रह गयीं
कितना कुछ रह गया
अनकहा

जानते - समझते
मगर अनचाहे
सहा सब
अघटित रखने का संताप
सारा अवसाद, क्षोभ, मान
बहता रहा मन से
देह तक
और मैं
साधती रही
स्वयं को
गहरे मौन में