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जाने की प्रक्रिया / नरेश चंद्रकर
Kavita Kosh से
चुपचाप कैसे चली गई
चौमासे की बरसातें
यह पता भी न चला
बारिश की फुहारें देखकर
यह अनुमान कठिन था
कि ऋतांत की बारिश हो रही है
यदि पहले ज्ञात होता
इसके बाद नहीं होगी वर्ष-भर बारिश
रोमांचित रहता मन
चुपचाप करवट लेगा मौसम
इसका संकेत नहीं था
मौसम विभाग के पास भी
बादलों की गर्जना
बारिश में भीगना
सड़कों पर जल-भराव के दृश्य
सीलन की गंध
गए सब चुपचाप
प्रकृति को देखकर ही नहीं
जीवन पर भी
ठीक बैठता है यह वाक्य
गए सब चुपचाप !!