भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाने क्या दुश्मनी है शाम के साथ / 'अना' क़ासमी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाने क्या दुश्मनी है शाम के साथ
दिल भी टूटा पड़ा है जाम के साथ

लफ़्ज़ होने लगे हैं सफ़ बस्ता
कौन उलझा ख़्याले-ख़ाम साथ

काम की बात बस नहीं होती
रोज़ मिलते हैं एहतमाम के साथ

कितना टूटा हुआ हूं अन्दर से
फिर कमर झुक गई सलाम के साथ

बज़्म बढ़े ये नामुमकिन
मुक्तदी उठ गये इमाम के साथ

इन्क़लाब अब नहीं है थमने का
शाहज़ादे भी हैं गुलाम के साथ

बेतकल्लुफ़ बहस हों मकतब में
इल्म घटता है एहतराम के साथ

शब्दार्थ
<references/>