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जाने क्या / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
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					जाने क्या तो है
तुम्हारी आँखों में
मन हो उठा है 
अवश
तपिश ऐसी कि 
शीत की रात भर गयी 
गरमाई से 
बंध जाना चाहता है मेरा
आजाद मन
कुछ तो है 
तुम्हारी आँखों में कि यह जानकर भी कि
गुरुत्वाकर्षण का नियम
चाँद पर 
काम नहीं करता
छू नहीं सकता आकाश
लाख ले उछालें
समुद्र
अवश इच्छा से घिरा मन फिर
क्यों पाना-छूना चाहता है तुम्हें
असंभव का आकर्षण
पराकाष्ठा का बिंदु
कविता की आद्यभूमि।
	
	