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जाने क्यों / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
आइसक्रीम, केक, रसगुल्ले
खाने में होती कब चूक
कभी नहीं होती है ऐसी
पढ़ने की लेकिन क्यों भूख।
घंटो घंटो खेलें फिर भी
थकने का हम नाम ना लें
होमवर्क करने में लेकिन
लगे झांकने क्यों बगलें।
पिकनिक सैर सपाटे मेले
लगे सदा ही बहुत भले।
क्यों ना चाव में भर ऐसे ही
हम शाला कि ओर चलें।
मित्रों की लगती है केवल
मीठी-मीठी क्यों बातें
मम्मी-पापा और गुरु जी
के उपदेश ना क्यों भाते।
सब को खुश रखने का हमको
मंत्र समझ में आए ना
ना जाने क्यों टोका टोकी
बात बात में भाए ना।