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जाने जाने की बात करते हो / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
Kavita Kosh से
जाने जाने की बात करते हो
क्यूँ सताने की बात करते हो
प्यार मिलता है प्यार देने से
किस ज़माने की बात करते हो
छीन कर मुस्कुराहटें ख़ुद ही
मुस्कुराने की बात करते हो
बिजलियाँ रख के आशियाने में
घर बनाने की बात करते हो
जान-ओ-दिल ले लिये मगर फिर भी
आज़माने की बात करते हो
आई मंज़िल तो फिर पलट आया
किस दीवाने की बात करते हो
तुम भी ऐ 'तर्ज़' खूब हो दिल से
दिल लगाने की बात करते