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जाने दो बीती बातों को जाने दो / वत्सला पाण्डेय
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जाने दो बीती बातों को जाने दो
खुशियों के कुछ बीज,
रोंप दो मन की माटी में
नव अंकुर को फिर
घर आँगन में लहराने दो
जाने दो बीती बातों को जाने दो.....
बिखरे रिश्तों के तिनके
ढूढो पूरे मन से
उन तिनकों को जोड़ जोड़
फिर नीड बनाने दो
जाने दो बीती बातों को जाने दो
द्वेष जलन ईर्ष्या भावों को
चूर चूर कर डालो
उस चूरे को नेह नदी में
फिर बह जाने दो
जाने दो बीती बातों को जाने दो
जब फैले दुःख का अंधियारा
दूजों के जीवन में
तेज रौशनी हर्ष दीप की
हमें जलाने दो.....
जाने दो बीती बातों को जाने दो...
कुछ अमलताश कुछ
रजनीगन्धा भी
रंग बिरंगे फूलों से
अब धरा सजाने दो
जाने दो बीती बातों को जाने दो