भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाने से पहले ही / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
भूमि जानती है
उसे इस तरह छोड़ा नहीं जाएगा
फिर नये-नये बीज उसके हृदय में आकर संरक्षण लेंगे
इन रास्तों में कभी न कभी कांटे चुभेंगे ही
और हमें यकीन हो जाएगा उस दिन
कि हमारा सावधान रहना कितना जरूरी था
हम कभी तृप्त नहीं होते हैं इंद्रधनुष को एक बार देखकर
बार-बार उसे देखने की इच्छा जागृत होती रहती है
और न ही सांसों से कभी मुक्ति चाहते हैं हम
जबकि हमारे जाने से पहले ही
लोग ढूंढ़ रहे होते हैं दूसरे हाथ
जो हमारे छोडक़र जाने के बाद
आसानी से स्वीकार कर लें उन्हें।